2. सीता माता अभयारण्य चित्तौड़गढ़ (प्रतापगढ़ जिले) में स्थित है।
3. सीता माता अभयारण्य उड़ने वाली गिलहरी एवं चौसिंगा घंटेल के लिए प्रसिद्ध है। यहां सागवान वन सर्वाधिक पाए जाते हैं।
5. कुरजां (डोमाइजल क्रेन) यह प्रवासी पक्षी जोधपुर जिले में फलोदी के पास खीचन गांव तथा तालछापर, लूनी, गुढ़ा विश्नोई आदि क्षेत्रों में आते हैं। कुरजां पक्षी को मारवाड़ में संदेश वाहक पक्षी माना जाता है।
7. सरिस्का एवं रणथंभौर अभयारण्य बाघ हेतु संरक्षित है।
8. चंबल घड़ियाल अभयारण्य घड़ियाल संरक्षण के लिए सर्वोत्तम स्थान है। स्तनपायी डॉल्फिन का पाया जाना इस अभयारण्य की प्रमुख विशेषता है।
9. जवाहर सागर अभयारण्य मगरमच्छ के लिए प्रसिद्ध है। यह उत्तरी भारत का प्रथम सर्प उद्यान है। (दूसरा सर्प उद्यान एवं विष एकत्रित करने की प्रयोगशाला भरतपुर में है।)
10. फुलवारी की नाल अभयारण्य:- इस अभयारण्य से मानसी, वाकल नदी निकलती है। इसमें बघेरा, जरख, भेड़िया, सांभर, चौसिंगा आदि जीव पाए जाते हैं। यह अभयारण्य अब सिर्फ अरावली की पहाड़ियों के ऊपर सिमट कर रह गया है, यहां बसे आदिवासी विशेषकर गरासिया, इन जंगलों में बारानी खेती और शिकार करते हैं।
11. राजस्थान के पश्चिम भाग में ‘पीवणा’ नामक विषैला सर्प पाया जाता है।
12. संकटग्रस्त पादपों को रेड डाटा बुक में सूचीबद्ध किया जाता है।
13. गजनेर अभयारण्य:- बटबड़ पक्षी/ रेत का तीतर (इंपीरियल सेंडगाउज) तथा जंगली सूअरों के लिए प्रसिद्ध है।
15. जैसलमेर (1900 वर्ग किलोमीटर) एवं बाड़मेर (1262 वर्ग किलोमीटर) में स्थित राष्ट्रीय मरू उद्यान में जीवावशेष पार्क (आकलवुड फॉसिल पार्क) स्थित है।