कम्प्यूटर की संरचना (Computer Architecture)
कम्प्यूटर के विभिन्न अवयव एवं उनके मध्य सम्बन्ध को कम्प्यूटर की संरचना (Architecture) कहते हैं। लगभग सभी कम्प्यूटरों की संरचना एक ही तरह की होती है। कम्प्यूटर के प्रमुख तीन भाग होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- इनपुट/आउटपुट यूनिट (Input/Output Unit)
- सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)
- मैमोरी यूनिट (Memory Unit)
- इनपुट/आउटपुट यूनिट (Input/Output Unit)
इनपुट यूनिट द्वारा हम अपना डेटा या निर्देश अथवा प्रोग्राम कम्प्यूटर में प्रविष्ट (Input) कराते हैं। जो सी. पी. यू. के द्वारा ग्रहण किया जाता है और मैमोरी में उचित स्थान पर स्टोर कर दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर ए. एल. यू. मैमोरी से ही डेटा तथा निर्देश ले लेता है, जहाँ कंट्रोल यूनिट के आदेश के अनुसार उन पर विभिन्न क्रियाएँ (Processing) की जाती हैं और परिणाम आउटपुट यूनिट को प्रेषित कर दिए जाते हैं। या पुनः मैमोरी में ही रख दिए जाते हैं। अन्य सभी यूनिट्स कंट्रोल यूनिट के नियन्त्रण में कार्य करती है।
इनपुट यूनिट (Input Unit)
इनपुट यूनिट वे हार्डवेयर होते हैं जो डेटा को कम्प्यूटर में भेजते हैं। बिना इनपुट यूनिट के कम्प्यूटर TV की तरह दिखने वाली एक ऐसी डिस्प्ले यूनिट हो जाता है, जिससे उपयोगकर्ता कोई कार्य नहीं कर सकता। इनपुट यूनिट का कार्य यह है कि हम अपनी भाषा में इसको जो भी डेटा या आदेश देते हैं। उसे ये बाइनरी कोड (Binary Code) में बदलकर कम्प्यूटर (अर्थात् सीपीयू) में भेज देते हैं। संक्षेप में, इनपुट युनिट द्वारा निम्न कार्य किए जाते हैं-
- यह उपयोगकर्ता द्वारा दिए गए निर्देशों (Instructions) तथा डेटा (Data) को पढ़ता या स्वीकार करता है।
- यह निर्देशों और डेटा को कम्प्यूटर द्वारा स्वीकार किए जाने वाले रूप में बदलता हैं।
- यह बदले हुए रूप में इन निर्देशों और डेटा को आगे की प्रोसेसिंग के लिए कम्प्यूटर को भेज देता है।
आउटपुट यूनिट (Output Unit)
डेटा तथा निर्देशों को परिणाम के रूप में प्रदर्शित करने के लिए जिन यूनिट्स का उपयोग किया जाता है, उन्हें आउटपुट यूनिट कहते हैं।
आउटपुट यूनिट का कार्य यह है कि वह कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले परिणामों को जो बाइनरी कोड में होते हैं। हमारे लिए उचित संकेतों या भाषा तथा चित्र में बदलकर हमें उपलब्ध कराता है। संक्षेप में, आउटपुट यूनिट द्वारा निम्न कार्य किए जाते हैं-
- यह कम्प्यूटर द्वारा दिए गए परिणामों को स्वीकार करता है, जोकि बाइनरी कोड के रूप में होते हैं और जिन्हे हमारे लिए समझना कठिन होता है।
- यह उन कोड के रूप में दिए गए परिणामों को हमारे द्वारा पढ़ने या समझने योग्य रूप में बदल देता है।
- यह बदले हुए रूप में परिणामों को हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है या छाप देता है।
सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit-CPU)
CPU ही प्रोसेसिंग यूनिट और कम्प्यूटर का वह भाग होता है, जिसमें अरिथमैटिक और लॉजिकल ऑपरेशन्स (Arithmetic and Logical Operations) निष्पादित होते हैं तथा निर्देश (Instructios) डिकोड (Decode) और एक्जिक्यूट (Execute) किए जाते हैं। CPU कम्प्यूटर के सम्पूर्ण ऑपरेशन्स (Operations) को नियन्त्रित करता है। सीपीयू को कम्प्यूटर का मस्तिष्क कहा जाता है। माइक्रो कम्प्यूटर के सीपीयू को माइक्रोप्रोसेसर भी कहा जाता है। यह कम्प्यूटर के बाहरी वे आन्तरिक डिवाइसों को कंट्रोल करता है।
सीपीयू के प्रमुख कार्य निम्न हैं-
- यह निर्देशों (Data Instructions) तथा डेटा को मुख्य मैमोरी (Main Memory) से रजिस्टर्स में स्थानान्तरित करता है।
- निर्देशों का क्रमिक रूप से क्रियान्वयन (Execution) करता है।
- आवश्यकता पड़ने पर यह आउटपुट डेटा को रजिस्टर्स से मुख्य मैमोरी में स्थानान्तरित करता है।
सीपीयू के प्रमुख तीन अवयव निम्नलिखित हैं-
अर्थमैटिक एण्ड लॉजिक यूनिट (Arithmetic and Logical Unit-ALU) – जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, सीपीयू के लिए सभी प्रकार की अंकगणितीय क्रियाएँ (जोड़ना, घटाना, गुणा करना तथा भाग देना) और तुलनाएँ (दो संख्याओं में यह बताना कि कौन-सी छोटी या बड़ी है अथवा दोनों बराबर हैं), इसी यूनिट में की जाती हैं। यह यूनिट कई ऐसे इलेक्ट्रॉनिक परिपथों (Circuits) से बनी होती है, जिनमें एक ओर से कोई दो संख्याएँ भेजने पर दूसरी ओर से उनका योग, अन्तर, गुणनफल या भागफल प्राप्त हो जाता हैं। इसमें सारी क्रियाएँ बाइनरी पद्धति में की जाती हैं। प्राप्त होने वाली संख्याओं तथा क्रियाओं के परिणामों को अस्थाई रूप से स्टोर करने या रखने के लिए इसमें कई विशेष बाइटें होती हैं, जिन्हें रजिस्टर (Resister) कहा जाता है।
रजिस्टर्स (Registers)
रजिस्टर एक ऐसा उपकरण या साधन है, जिसमें डेटा स्टोर किया जाता है। रजिस्टर्स बहुत तेज गति वाली अस्थाई स्टोरेज युक्ति है। मैमोरी के अनुक्रम (Memory Hierarchy) में रजिस्टरों का स्थान सबसे ऊँचा होता है और ये सीपीयू को किसी डेटा का उपयोग करने के लिए सबसे तीव्र मार्ग देते हैं। किसी प्रोग्राम के क्रियान्वयन को सबसे तीव्र गतिशीलता प्रदान करने के लिए रजिस्टरों का व्यापक प्रयोग किया जाता है।
कंट्रोल यूनिट (Control Unit)
इस भाग का कार्य सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यह कम्प्यूटर के सभी भागों के कार्यों पर नज़र रखता है और उनमें परस्पर तालमेल बैठाने के लिए उचित आदेश भेजता है। इसका सबसे प्रमुख और पहला कार्य यह है कि हम जिस प्रोग्राम का पालन कराना चाहते हैं, यह उसे मैमोरी में से क्रमशः पढ़कर उसका विश्लेषण (Analysis) करता है और उसका पालन कराता है। किसी आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए वह कम्प्यूटर के दूसरे सभी भागों को उचित निर्देश जारी करता है। उदाहरण के लिए, मैमोरी को आदेश दिया जा सकता है कि वह कोई डेटा किसी स्थान पर स्टोर कर दे या वहाँ से उठाकर (पढ़कर) एएलयू में भेज दे। कम्प्यूटर के सभी भागों में तालमेल बनाकर प्रोग्रामों का ठीक-ठाक पालन कराना इसी इकाई का दायित्व है। इस प्रकार सीपीयू की सभी यूनिटों द्वारा आपसी सहयोग से उपयोगकर्ता द्वारा बताए गए कार्य किए जाते हैं। इसके लिए जब भी किसी इनपुट की आवश्यकता होती है। वह किसी इनपुट यूनिट से ले लिया जाता है और जो परिणाम या सन्देश आते हैं, उन्हें किसी आउटपुट यूनिट को भेज दिया जाता है।
माइक्रोप्रोसेसर (Microprocessor)
सीपीयू किसी कम्प्यूटर का मस्तिष्क (Brain) होता है। इसी के अन्दर सभी प्रकार की गणनाएँ (Calculations) और प्रोसेसिंग की जाती है, इसको ही प्रोसेसर भी कहा जाता है। माइक्रो कम्प्यूटरर्स के लिए जिस प्रोसेसर का उपयोग किया जाता है, उसे माइक्रोप्रोसेसर कहा जाता है। इसी के द्वारा सभी कार्य किए जाते हैं। वैसे कभी-कभी जटिल गणनाओं के लिए अलग से मैथ प्रोसेसर (Math Processor) भी लगाया जाता है।। माइक्रोप्रोसेसर एक सेमीकण्डक्टर (Semiconductor) इंटिग्रेटेड सर्किट पर बनाई गई प्रोग्राम करने योग्य (Programmable) डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक वस्तु है। जो किसी सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) के सभी कार्य करती है। यह कम्प्यूटर का दिल व मस्तिष्क होता है। यह केवल मशीनी भाषा ही समझती है।
- इंटेल 4004 (Intel 4004) पहला ऐसा माइक्रोप्रोसेसर था, जिसमें सीपीयू के सभी अवयव एक चिप पर लिए गए।
- कुछ महत्वपूर्ण माइक्रोप्रोसेसरों के नाम हैं – इंटेल डूऐल कोर (Intel Dual Core) तथा पेंटियम IV (Pentium IV) आदि।
मैमोरी यूनिट (Memory Unit)
मैमोरी कम्प्यूटर का वह भाग है जो डेटा तथा निर्देशों को संग्रहीत करती है। कम्प्यूटर की मैमोरी आधुनिक कम्प्यूटरों के मूल कार्यों में से एक अर्थात् सूचना भण्डारण (Information Retention) की सुविधा प्रदान करती है। यह कम्प्यूटर के सीपीयू का एक भाग होती है और उससे मिलकर सम्पूर्ण कम्प्यूटर बनाती है। मैमोरी यूनिट के दो भाग होते हैं।
(i) प्राथमिक मैमोरी
(ii) सेकेण्डरी मैमोरी
प्राथमिक मैमोरी (Primary Memory): – इसे आन्तरिक (Internal) या मुख्य (Main) मैमोरी भी कहा जाता है। यह सीपीयू से सीधे जुड़ी होती है। इसका अर्थ है कि सीपीयू इसमें स्टोर किए गए निर्देशों को लगातार पढ़ता रहता है और उनका पालन करता रहता है। इसके साथ ही कोई डेटा जिस पर सक्रियता से कार्य किया जा रहा है वह भी इसमें स्टोर किया जाता है।
प्राइमरी मैमोरी में किसी समय चल रहे प्रोग्राम/प्रोग्रामों तथा उनके इनपुट डेटा और आउटपुट का अस्थाई रूप से कुछ समय के लिए स्टोर किया जाता है। जैसे ही उनकी आवश्यकता समाप्त हो जाती है, उन्हें हटाकर दूसरे डेटा या प्रोग्राम उस जगह रखे जा सकते हैं। प्राइमरी मैमोरी का आकार सीमित होता है। परन्तु इनकी गति बहुत तेज होती है। प्राइमरी मैमोरी में निम्न सूचनाएँ रखी जाती हैं-
- प्रोसेस किए जाने वाले समस्त डेटा और उसको प्रोसेस करने के लिए आवश्यक निर्देश जो इनपुट साधनों से प्राप्त किए गए होते हैं।
- प्रोसेसिंग के मध्यवर्ती (Intermediate) परिणाम।
- प्रोसेसिंग के अन्तिम (Final) परिणाम। उन्हें आउटपुट साधन को भेजे जाने तक सुरक्षित रखा जाता है।
प्राइमरी मैमोरी दो प्रकार की होती हैं-
(i) रेण्डम एक्सेस मैमोरी
(ii) रीड ओनली मैमोरी
रेण्डम एक्सेस मैमोरी (Random Access Memory-RAM): – इसे संक्षेप में रैम (RAM) कहा जाता है। यह मैमोरी एक चिप पर होती है, जो मैटल-ऑक्साइड सेमीकण्डक्टर (MOS) से बनी होती है। हम इस मैमोरी के किसी भी लोकेशन को चुनकर उसका उपयोग सीधे ही किसी डेटा को स्टोर करने या उसमें से डेटा पढ़ने के लिए कर सकते हैं।
प्रत्येक लोकेशन का एक निश्चत पता (Address) होता है। जिसकी सहायता से हम उस लोकेशन तक पहुँच सकते हैं। इस मैमोरी के रजिस्टरों या लोकेशनों को हम आवश्यकता होने पर कभी भी उपयोग में ला सकते हैं। इसलिए इसका नाम रैण्डम एक्सेस मैमोरी रखा गया है। रैम में भरी जाने वाली सूचनाएँ अस्थाई होती हैं और जैसे ही कम्प्यूटर की बिजली बन्द कर दी जाती है वैसे ही वे समस्त सूचनाएँ नष्ट हो जाती हैं। रैम में वे प्रोग्राम और डेटा रखे जाते हैं, जिनको सीपीयू खोज सके और वहाँ से प्राप्त कर सकें। इस मैमोरी को भी कई सेक्शनों में बाँटा जाता है, ताकि उसमें रखी गई सूचनाओं को व्यवस्थित किया जा सके और उन्हें पाया जा सके। ऐसे प्रत्येक सेक्शन का एक निश्चित पता होता हैं। किसी डेटा बेस की सहायता से हम रैम से किसी सूचना को निकाल सकते हैं या उसमें की सूचना स्टोर कर सकते हैं।
रीड ओनली मैमोरी (Read Only Memory-ROM) इसे संक्षेप में रोम (ROM) कहा जाता है। यह वह मैमोरी है जिसमें डेटा पहले से भरा जा चुका होता है और जिसे हम केवल पढ़ सकते हैं। हम उसे हटा या बदल नहीं सकते। वास्तव में रोम चिप बनाते समय ही उसमें कुछ आवश्यक प्रोग्राम और डेटा लिख दिए जाते हैं, जो स्थाई होते हैं। जब कम्प्यूटर की बिजली बन्द कर दी जाती है, तब भी रोम चिप में भरी हुई सूचनाएँ सुरक्षित बनी रहती हैं। रोम चिपों का उपयोग सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों; जैसे- कैलकुलेटर, वीडियो गेम, डिजिटल कैमरा आदि में किया जाता है।
अधिकांश पर्सनल कम्प्यूटरों में रोम मैमोरी के बहुत उपयोग होते हैं। इनमें प्रायः ऐसी सूचनाएँ स्टोर की जाती हैं जो स्थाई और महत्त्वपूर्ण होती हैं या वे प्रोग्राम स्टोर किए जाते हैं। जिनको बदलने की आवश्यकता नहीं होती, जैसे-कम्प्यूटर को बूट करने वाला प्रोग्राम। पुराने पर्सनल कम्प्यूटरों में रोम मैमोरी में बेसिक इनपुट-आउटपुट सिस्टम (BIOS) भी स्टोर किए जाते थे। जो पीसी के हार्डवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम के बीच अनुवादक (Translator) का कार्य करते थे।
सेकेण्डरी मैमोरी (Secondary Memory): – इस प्रकार की मैमोरी सीपीयू से बाहर होती है, इसलिए इसे बाह्य (External) या द्वितीयक मैमोरी भी कहा जाता है। कम्प्यूटर की मुख्य मैमोरी बहुत महंगी होने तथा बिजली बन्द कर देने पर उसमें रखी अधिकतर सूचनाएँ नष्ट हो जाने के कारण न तो हम उसे इच्छानुसार बढ़ा सकते हैं और न हम उसमें कोई सूचना स्थाई रूप से स्टोर कर सकते हैं। इसलिए हमें सहायक मैमोरी का उपयोग करना पड़ता है। इसकी कीमत तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम और डेटा स्टोर करने की क्षमता (Capacity) बहुत अधिक होती है। इसमें एक ही कमी है कि इन माध्यमों में डेटा को लिखने (अर्थात स्टोर करने) तथा पढ़ने (अर्थात् प्राप्त करने) में समय बहुत लगता है। इसलिए हम इसमें ऐसी सूचनाएँ भण्डारित करते हैं, जिन्हें लम्बे समय तक सुरक्षित रखना हो तथा जिनकी आवश्यकता लगातार नहीं पड़ती हो। सहायक मैमोरी का उपयोग बैकअप (Backup) के लिए किया जाता है। जब हमें किसी डेटा की तत्काल आवश्यकता नहीं रहती, तो उसे किसी चुम्बकीय माध्यम, जैसे- फ्लापी डिस्क या चुम्बकीय टेप पर नकल करके अलग सुरक्षित कर लिया जाता है। ऐसा प्रायः हार्डडिस्क को खाली करने के लिए किया जाता है, ताकि उस पर ऐसा डेटा भरा जा सके, जिसकी आवश्यकता पड़ रही हो और डिस्क पर जगह न हो। बैकअप साधन में भण्डारित किए गए डेटा को आगे कभी आवश्यकता पड़ने पर हार्डडिस्क पर उतारा या नकल किया जा सकता है। प्रारम्भिक कम्प्यूटरों में छिद्रित कार्ड, पेपर टेप तथा चुम्बकीय टेपों का प्रयोग सहायक भण्डारण के लिए किया जाता था। लेकिन आजकल मुख्य रूप से चुम्बकीय डिस्कों का प्रयोग इस कार्य हेतु किया जाता है जो कई प्रकार से सुविधाजनक हैं।