INPUT-OUTPUT DEVICES

इनपुट और आउटपुट युक्तियाँ (Input & Output Device)

कम्प्यूटर और मनुष्य के मध्य सम्पर्क (Communication) स्थापित करने के लिए इनपुट-आउटपुट युक्तियों का प्रयोग किया जाता है। इनपुट युक्तियों का प्रयोग कम्प्यूटर को डेटा और निर्देश प्रदान करने के लिए किया जाता है। इनपुट डेटा को प्रोसेस करने के बाद, कम्प्यूटर आउटपुट युक्तियों के द्वारा प्रयोगकर्ता को आउटपुट प्रदान करता है। कम्प्यूटर मशीन से जुड़ी हुई सभी इनपुट-आउटपुट यूक्तियों को पेरीफेरल युक्तियाँ भी कहते हैं।

 

इनपुट युक्तियाँ (Input Devices)

वे युक्तियाँ, जिनका प्रयोग उपयोगकर्ता के द्वारा कम्प्यूटर को डेटा और निर्देश प्रदान करने के लिए किया जाता है, इनपुट युक्तियाँ कहलाती हैं। इनपुट युक्तियाँ उपयोगकर्ता से इनपुट लेने के बाद इसे मशीनी भाषा (Machine Language) में परिवर्तित करती हैं और इस परिवर्तित मशीनी भाषा को सीपीयू के पास भेज देती हैं। कुछ प्रमुख इनपुट युक्तियाँ निम्न हैं-

 

  1. कीबोर्ड (Keyboard)

कीबोर्ड एक प्रकार की मुख्य इनपुट डिवाइस है। कीबोर्ड का प्रयोग कम्प्यूटर को अक्षर और अंकीय रूप में डेटा और सूचना देने के लिए करते हैं। कीबोर्ड एक सामान्य टाइपराइटर की तरह दिखता है, किन्तु इसमें टाइपराइटर की अपेक्षा कुछ ज्यादा कुंजियाँ (Keys) होती हैं। जब कोई कुंजी कोबोर्ड पर दबाई जाती है तो कीबोर्ड, कीबोई कंट्रोलर और कीबोर्ड बफर से सम्पर्क करता है। कीबोर्ड कंट्रोलर, दबाई गई कुंजी के कोड को कीबोर्ड बफर में स्टोर करता है और बफर में स्टोर कोड सी पी यू के पास भेजा जाता है। सी पी यू इस कोड को प्रोसेस करने के बाद इसे आउटपुट डिवाइस पर प्रदर्शित करता है। कुछ विभिन्न प्रकार के कीबोर्ड जैसे कि QWERTY, DVORAK और AZERTY मुख्य रूप से प्रयोग किए जाते हैं।

 

कीबोर्ड में कुंजियों के प्रकार (Types of Keys on Keyboard)

कीबोर्ड में निम्न प्रकार की कुंजियाँ होती हैं-

(i) अक्षरांकीय कुंजियाँ (Alphanumeric Keys): – इसके अन्तर्गत अक्षर कुंजियाँ (A, B,……z, a, b, c….., z) और अंकीय कुंजियाँ (0, 1, 2, ……..9) आती हैं।

 

(ii) अंकीय कुंजियाँ (Numeric Keys): – ये कुंजियाँ कीबोर्ड पर दाएँ तरफ होती हैं। ये कुंजियाँ अंको (0, 1, 2, …… 9) और गणितीय ऑपरेटरों (Mathematical operators) से मिलकर बनी होती है।

 

(iii) फंक्शन कुंजियाँ (Function Keys): – इन्हें प्रोग्रामेबल कुंजियाँ भी कहते हैं। इनके द्वारा कम्प्यूटर से कुछ विशिष्ट कार्य करवाने के लिए निर्देश दिया जाता है। ये कुंजियाँ अक्षरांकीय कुंजियों के ऊपर F1, F2,…..

F12 से प्रदर्शित की जाती हैं।

 

(iv) कर्सर कंट्रोल कुंजियाँ (Cursor Control Keys): – इसके अन्तर्गत चार तीर के निशान वाली कुंजियाँ आती हैं जो चार दिशाओं (दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे) को दर्शाती हैं। ये कुंजियाँ अक्षरांकीय कुंजियों और अंकीय कुंजियों के मध्य उल्टे T आकार में व्यवस्थित होती हैं, इनका प्रयोग कर्सर को ऊपर, नीचे, दाएँ या बाएँ ले जाने के लिए करते हैं।

 

इन चारों कुंजियों के अतिरिक्त चार कुंजियाँ और होती हैं, जिनका प्रयोग कर्सर को कंट्रोल करने के लिए करते हैं। ये कुंजियाँ निम्न हैं-

(a) होम (Home): – इसका प्रयोग लाइन के प्रारम्भ में या डाक्यूमेण्ट के प्रारम्भ में कर्सर को वापस भेजने के लिए करते हैं।

(b) एण्ड (End): – इसका प्रयोग कर्सर को लाइन के अन्त में भेजने के लिए करते हैं।

(c) पेज अप (Page Up): – जब इस कुंजी को दबाया जाता है तो पेज का व्यू (View) एक पेज ऊपर हो जाता है और कर्सर पिछले पेज पर चला जाता है।

(d) पेज डाउन (Page Down): – जब ये कुंजी दबाई जाती है तो पेज का व्यू एक पेज नीचे हो जाता है और कर्सर अगले पेज पर चला जाता है।

 

कीबोर्ड की अन्य कुंजियाँ कुछ अन्य कुंजियाँ निम्नलिखित हैं।

कंट्रोल  कुंजियाँ (Control Keys-Ctrl) ये कुंजियाँ, अन्य कुंजियों के साथ मिलकर किसी विशेष कार्य को करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। जैसे Ctrl + S डॉक्यूमेंट  को सुरक्षित करने के लिए प्रयोग होती हैं।

 

एंटर कुंजी (Enter Key): – इसे कीबोर्ड की मुख्य कुंजी भी कहते हैं। इसका प्रयोग उपयोगकर्ता द्वारा टाइप किए गए निर्देश को कम्प्यूटर को भेजने के लिए किया जाता है। एंटर कुंजी टाइप करने के बाद निर्देश कम्प्यूटर के पास जाता है और निर्देश के अनुसार कम्प्यूटर आगे का कार्य करता है।

 

शिफ्ट कुंजी (Shift Keys): – कीबोर्ड में कुछ कुंजी ऐसी होती हैं, जिनमें ऊपर-नीचे दो संकेत छपे होते हैं। उनमें से ऊपर के संकेत को टाइप करने के लिए उसे शिफ्ट कुंजी के साथ दबाते हैं। इसे कॉम्बीनेशन-की भी कहा जाता है।

 

एस्केप कुंजी (Escape Key): – इसका प्रयोग किसी भी कार्य को समाप्त करने या बीच में रोकने के लिए करते हैं। यदि Ctrl Key दबाए हुए, एस्केप कुंजी दबाते हैं तो यह स्टार्ट मेन्यू (Start Menu) को खोलता हैं।

 

बैक स्पेस कुंजी (Back Space Keys): – इसका प्रयोग टाइप किए गए डेटा या सूचना को समाप्त करने के लिए करते हैं। यह डेटा को दाएँ से बाएँ दिशा की ओर समाप्त करता है।

 

डिलीट कुंजी (Delete Keys): – इस कुंजी का प्रयोग कम्प्यूटर की मेमोरी से सूचना और स्क्रीन से अक्षर को समाप्त करने के लिए करते हैं। किन्तु यदि इसे शिफ्ट की के साथ दबाते हैं तो चुनी हुई फाइल कम्प्यूटर की मेमोरी से स्थायी रूप से समाप्त हो जाती हैं।

 

कैप्स लॉक कुंजी (Caps Lock Key): – इसका प्रयोग वर्णमाला (Alphabet) को बड़े अक्षरों (Capital letters) में टाइप करने के लिए करते हैं। जब ये की सक्रिय (Enable) होती है तो बड़े अक्षर में टाइप होता हैं। यदि यह कुंजी निष्क्रिय (Disable) होती है तो छोटे अक्षर (Small Letter) में टाइप होता है।

 

स्पेसबार कुंजी (Spacebar Key): – इसका प्रयोग दो शब्दों या अक्षरों के बीच स्पेस बनाने या बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह कीबोर्ड की सबसे लम्बी कुंजी होती हैं।

 

नम लॉक की (Num Lock Key): – इसका उपयोग सांख्यिक की-पैड (Numeric Key pad) को सक्रिय या निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है। यदि ये कुंजी सक्रिय होती है तो अंक टाइप होता है और यदि ये कुंजी निष्क्रिय होती है तो अंक टाइप नहीं होता हैं।

 

विण्डो कुंजी (Window Key): – इसका प्रयोग स्टार्ट मेन्यू को खोलने के लिए करते हैं।

 

टैब कुंजी (Tab Key): – इसका प्रयोग कर्सर को एक बार में पाँच स्थान आगे ले जाने के लिए किया जाता है। कर्सर को पुनः पाँच स्थान वापस लाने के लिए टैब कुंजी को शिफ्ट कुंजी के साथ दबाया जाता है। इसका प्रयोग पैराग्राफ इंडेंट करने के लिए भी किया जाता है।

 

  1. माउस (Mouse)

माउस एक प्रकार की पॉइंटिंग युक्ति है। इसका प्रयोग कर्सर (टेक्स्ट में आपकी पोजिशन दर्शाने वाला ब्लिकिंग पॉइंट) या पॉइंटर को एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त माउस का प्रयोग कम्प्यूटर में ग्राफिक्स (Graphics) की सहायता से कम्प्यूटर को निर्देश देने के लिए करते हैं। इसका आविष्कार वर्ष 1963 में स्टैण्डफोर्ड रिसर्च सेंटर डगलस-सी एंगलबर्ट ने किया था। इसमें सामान्यतः दो या तीन बटन होते हैं। एक बटन को बायाँ बटन (Left Button) और एक बटन को दायाँ बटन (Right Button) कहते हैं। दोनों बटनों के बीच में एक स्क्रॉल व्हील (Wheel) होता है, जिसका प्रयोग किसी फाइल में ऊपर या नीचे के पेज पर कर्सर को ले जाने के लिए करते हैं।

माउस सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं।

(I) वायरलेस माउस (Wireless Mouse)

(II) मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)

(III) ऑप्टिकल माउस (Optical Mouse)

 

माउस के चार प्रमुख कार्य हैं-

(a) क्लिक या लैफ्ट क्लिक (Click or Left Click): – यह स्क्रीन पर किसी एक Object को चुनता है।

(b) डबल क्लिक (Double Click): – इसका प्रयोग एक डॉक्यूमेंट या प्रोग्राम को खोलने के लिए करते हैं।

(c) दायाँ क्लिक (RightClick): – यह स्क्रीन पर आदेशों की एक सूची दिखाता है। दायाँ क्लिक का प्रयोग किसी चुने हुए Object के गुण को एक्सेस (Access) करने के लिए करते हैं।

(d) डैग और ड्रॉप (Drag and Drop): – इसका प्रयोग किसी Object को स्क्रीन पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए करते हैं।

 

  1. ट्रैकबॉल (Trackball)

ट्रैकबॉल एक प्रकार की पॉइंटिंग युक्ति है जिसे माउस की तरह प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बॉल ऊपरी सतह पर होती है। इसका प्रयोग कर्सर के मूवमेंट (Movement) को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग निम्नलिखित कार्यों में किया जाता है।

(a) CAD वर्कस्टेशनों (Computer Aided Design Workstations) में।

(b) CAM वर्कस्टेशनों (Computer Aided Manufacturing Workstations) में।

(c) कम्प्यूटरीकृत वर्कस्टेशनों (Computerised Worstations) जैसे कि एयर-ट्रैफिक कंट्रोल रूम (Air-traffic Control Room),रडार कंट्रोल्स (Radar Controls) में।

(d) जहाज पर सोनार तन्त्र (Sonar System) में।

 

  1. जॉयस्टिक (Joystick)

जॉयस्टिक एक प्रकार की पॉइंटिंग युक्ति होती है जो सभी दिशाओं में मूव करती है और कर्सर के मूवमेंट को कंट्रोल करती है। जॉयस्टिक का प्रयोग फ्लाइट सिम्युनेटर (Flight simulator), कम्प्यूटर गेमिंग,जॉयस्टिक CAD/CAM सिस्टम में किया जाता है। इसमें एक हैण्डल (Handle) लगा होता है, जिसकी सहायता से कर्सर के मूवमेंट को कंट्रोल करते हैं। जॉयस्टिक और माउस दोनों एक ही तरह से कार्य करते हैं किन्तु दोनों में यह अन्तर है कि कर्सर का मूवमेंट  माउस के मूवमेंट पर निर्भर करता है, जबकि जॉयस्टिक में, पॉइंटर  लगातार अपने पिछले पॉइंटिं दिशा की ओर मूव करता रहता है और उसे जॉयस्टिक की सहायता से कंट्रोल किया जाता है।

 

  1. प्रकाशीय कलम (Light Pen)

प्रकाशीय कलम एक हाथ से चलाने वाली इलेक्ट्रोऑप्टिकल प्वॉइटिग युक्ति है, जिसका प्रयोग ड्रॉइंग्स (Drawings) बनाने के लिए, ग्राफिक्स बनाने के लिए और मेन्यू चुनाव के लिए करते हैं। पेन में छोटे ट्यूब (Small Tube) के अन्दर एक फोटोसेल (Photocell) होता है।

यह पेन स्क्रीन के पास जाकर प्रकाश को सेन्स (Sense) करता है तथा उसके बाद पल्स उत्पन्न करता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट(Personal Digital Assistant-PDA) में करते हैं। इसका प्रयोग स्क्रीन पर किसी विशिष्ट स्थिति (Location) को पहचानने (Identify) के लिए करते हैं। यदि यह स्क्रीन के किसी रिक्त स्थान पर रखा जाता है तो यह किसी भी प्रकार की सूचना नहीं देता है।

 

  1. टच स्क्रीन (Touch Screen)

टच स्क्रीन एक प्रकार की इनपुट युक्ति टच स्क्रीन है जो उपयोगकर्ता से तब इनपुट लेता है जब उपयोगकर्ता अपनी अंगुलियों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर रखता है। टच स्क्रीन का प्रयोग सामान्यतः निम्न अनुप्रयोगों (Applications) में किया जता है।

(i) ए टी एम (ATM) में

(ii) एयरलाइन आरक्षण (Air-Line Reservation) में

(iii) बैंक (Bank) में

(iv) सुपर मार्केट (Super Market) में

(v) मोबाइल (Mobile) में

 

  1. डिजिटाइजर्स और ग्राफिक टैबलेट्स (Digitizers and Graphic Tablets)

ग्राफिक टैबलेट के पास एक विशेष कमाण्ड होती है जो ड्राइंग, फोटो आदि को डिजिटल सिगनल्स में परिवर्तित करती है। यह कलाकार (Artist) को हाथ से इमेज और ग्राफिक इमेज बनाने की अनुमति प्रदान करता है।

ग्राफिक टेबलेट।

 

  1. ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader-OMR)

ऑप्टिकल मार्क रीडर एक प्रकार की इनपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी कागज पर बनाए गए चिन्हों को पहचानने के लिए किया जाता है। यह कागज पर प्रकाश की किरण छोड़ता है ऑप्टिकल मार्क रीडर और प्रकाश की किरण जिस चिह्न पर पड़ती है उस चिह्न को OMR रीड (read) करके कम्प्यूटर को इनपुट दे देता है। OMR की सहायता से किसी वस्तुनिष्ठ प्रकार (Objective Type) की प्रयोगात्मक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका की जाँच की जाती है। इसकी सहायता से हजारों प्रश्नों का उत्तर बहुत ही कम समय में आसानी से जाँचा जा सकता है।

 

  1. ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition-OCR)

यह ओ एम आर (OMR) का ही कुछ सुधरा हुआ रूप होता है। यह केवल साधारण चिह्नों को ही नहीं, बल्कि छापे गए या हाथ से साफसाफ लिखे गए अक्षरों को भी पढ़ लेता है। यह प्रकाश स्रोत की सहायता से कैरेक्टर की शेप को पहचान लेता है। इस तकनीक को ऑप्टिकले कैरेक्टर रिकॉग्नीशन (Optical Character Recognition) कहा जाता है। इसका उपयोग पुराने दस्तावेजों को पढ़ने में किया जाता है। इसका प्रयोग कई अनुप्रयोगों, जैसे-कि टेलीफोन, इलेक्ट्रीसिटी बिल, बीमा प्रीमियम आदि को पढ़ने में किया जाता है। OCR की अक्षरों को पढ़ने की गति 1500 से 3000 कैरेक्टर प्रति सेकण्ड होती है।

 

  1. मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रीडर (Magnetic Ink Character Reader-MICR)

MICR सूचनाओं का मैट्रिक्स के रूप में उनके आकार का परीक्षण करता है, उसके बाद उसे रीड करता है और रीड करने के बाद सूचनाओं को कम्प्यूटर में भेजता है। सूचनाओं में कैरेक्टर एक विशेष इंक से छपे होते हैं, जिसमें आयरन कण (Iron Particles) होते हैं और उन कणों को मैग्नेटाइज Magnetize) किया जा सकता है। इस प्रकार की स्याही को चुम्बकीय स्याही कहते हैं। इसका प्रयोग बैंको में चेक में नीचे छपे मैग्नेटिक इनकोडिंग संख्याओं को पहचानने और प्रोसेस करने के लिए किया जाता है।

 

  1. स्मार्ट कार्ड रीडर (Smart Card Reader)

स्मार्ट कार्ड रीडर एक डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी स्मार्ट कार्ड के माइक्रोप्रोसेसर को एक्सेस (Access) करने के लिए किया जाता है। स्मार्ट कार्ड दो प्रकार के होते हैं-

(i) मैमोरी कार्ड

(ii) माइक्रोप्रोसेसर कार्ड

 

मैमोरी कार्ड में नॉन-वॉलेटाइल मैमोरी स्टोरेज कम्पोनेण्ट होता है जो डेटा को स्टोर करता है। माइक्रोप्रोसेसर कार्ड में वॉलेटाइल मैमोरी और माइक्रोप्रोसेसर कम्पोनेन्टस दोनों होते हैं। कार्ड सामान्यतः प्लास्टिक से बना होता है। स्मार्ट कार्ड का प्रयोग बड़ी कम्पनियों और संगठनों में सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता हैं।  

 

  1. बायोमैट्रिक सेन्सर (Bio-metric Sensor)

बायोमैट्रिक सेन्सर एक प्रकार की डिवाइस है, जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति की अंगुलियों के निशान को पहचानने के लिए करते हैं। बायोमेट्रिक सेन्सर का मुख्य प्रयोग सुरक्षा के उद्देश्य से करते है।

इसका प्रयोग किसी संगठन में कर्मचारियों या संस्थान में विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए किया जाता है। बायोमैट्रिक बहुत शुद्धतापूर्वक एवं दक्षतापूर्वक कार्य करता है, इसीलिए इसका प्रयोग सुरक्षा के उद्देश्य से ज्यादा होता है।

 

  1. स्कैनर (Scanner)

स्कैनर का प्रयोग पेपर पर लिखे हुए डेटा या छपे हुए चित्र (Image) को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने के लिए करते हैं। यह एक ऑप्टिकल इनपुट डिवाइस है जो इमेज को इलेक्ट्रॉनिक रूप में बदलने के लिए प्रकाश को इनपुट की तरह प्रयोग करता है। और फिर चित्र को डिजिटल रूप में बदलने के बाद कम्प्यूटर में भेजता है। स्कैनर का प्रयोग किसी दस्तावेज (Documents) को उसके वास्तविक रूप में स्टोर करने के लिए किया जा सकता है, जिससे उसमें आसानी से कुछ बदलाव किया जा सके।

 

  1. माइक्रोफोन (Microphone-Mic)

माइक्रोफोन एक प्रकार का इनपुट डिवाइस है, जिसका प्रयोग कम्प्यूटर को साउण्ड के रूप में इनपुट देने के लिए किया जाता है। माइक्रोफोन आवाज को प्राप्त करता है तथा उसे कम्प्यूटर के फॉर्मेट (Format) में परिवर्तित करता है, माइक्रोफोन जिसे डिजिटाइज्ड साउण्ड या डिजिटल ऑडियो भी कहते हैं। माइक्रोफोन में आवाज को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने के लिए एक सहायक हार्डवेयर की आवश्यकता पड़ती है। इस सहायक हार्डवेयर को साउण्ड कार्ड कहते हैं। माइक्रोफोन को कम्प्यूटर के साथ जोड़ा जाता है, जिससे आवाज कम्प्यूटर में रिकॉर्ड हो जाती है। आजकल माइक्रोफोन का प्रयोग स्पीच रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर (Speech Recognition Software) के साथ भी किया जाता है अर्थात् इसकी सहायता से हमें कम्प्यूटर टाइप करने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि जो बोला जाता है वो डॉक्यूमेंट  में छप जाता है।

 

  1. वेबकैम या वेबकैमरा (Webcam or Web Camera)

वेबकैम एक प्रकार की वीडियों कैप्चरिंग (Capturing) डिवाइस है। यह एक डिजिटल कैमरा है जिसे कम्प्यूटर के साथ जोड़ा जाता है। इसका प्रयोग वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग और ऑनलाइन चैटिंग (Chatting) आदि कार्यों के लिए किया जाता है। इसकी सहायता से चित्र भी बना सकते हैं। यदि दो लोगों के कम्प्यूटर में वेबकैमरा लगा है और कम्प्यूटर इण्टरनेट से जुड़ा हुआ है तो हम आसानी से एक-दूसरे को देखकर बातचीत कर सकते हैं।

 

आउटपुट डिवाइस (Output Device)

आउटपुट डिवाइस का प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को देखने अथवा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आउटपुट डिवाइस आउटपुट को हार्ड कॉपी अथवा सॉफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते है। सॉफ्ट कॉपी वह आउटपुट होता है जो उपयोगकर्ता को कम्प्यूटर के मॉनीटर पर दिखाई देता है अथवा स्पीकर में सुनाई देता है। जबकि हार्ड कॉपी वह आउटपुट होता है जो उपोयगकर्ता को पेपर पर प्राप्त होता है। कुछ प्रमुख आउटपुट डिवाइसेज निम्न हैं जो आउटपुट को हार्ड कॉपी या साफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

 

  1. मॉनीटर (Monitor)

मॉनीटर को विजुअल डिस्प्ले डिवाइस (Visual Display Device-VDU) भी कहते है। मॉनीटर कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को सॉफ्ट कॉपी के रूप में दिखाता है। मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं, मोनोक्रोम मॉनीटर डिस्प्ले और कलर डिस्प्ले मॉनीटर। मोनोक्रोम डिस्प्ले मॉनीटर टेक्स्ट को डिस्प्ले करने के लिए एक ही रंग का प्रयोग करता है और कलर डिस्प्ले मॉनीटर एक समय में 256 रंगो को दिखा सकता है। मॉनीटर पर चित्र छोटे-छोटे बिन्दुओं (Dots) से मिलकर बनता है। इन बिन्दुओं को पिक्सल (Pixels) के नाम से भी जाना जाता है। किसी चित्र की स्पष्टता (Clarity) तीन तथ्यों पर निर्भर करती है।

 

(I) स्क्रीन का रिजोल्यूशन (Resolution of Screen): – किसी मॉनीटर का रिजोल्यूशन उसके क्षैतिज (Horizontal) और ऊर्ध्वाधर (Vertical) पिक्सल्स की संख्या के गुणनफल के बराबर होता है। किसी मॉनीटर की रिजोल्यूशन जितनी अधिक होगी, उसके पिक्सल उतने ही नजदीक होंगे और चित्र उतना ही स्पष्ट होगा।

 

(Il) डॉट पिच (Dot Pitch): – दो कलर्ड पिक्सल के विकर्णो के बीच की दूरी को डॉट पिच (Dot Pitch) कहते हैं। यदि किसी मॉनीटर की डॉट पिच कम-से-कम हो तो उसका रिजोल्यूशन अधिक होगा तथा उस मॉनीटर में चित्र काफी स्पष्ट होगा।

 

(III) रिफरेश रेट (Refresh Rate): – एक सेकण्ड में कम्प्यूटर का मॉनीटर जितनी बार रिफरेश होता है, वह संख्या उसकी रिफरेश रेट कहलाती है। ज्यादा-से-ज्यादा रिफरेश करने पर स्क्रीन पर चित्र ज्यादा अच्छे और स्पष्ट दिखाई देते है।

  1. प्रिंटर्स (Printers)

प्रिंटर्स एक प्रकार का आउटपुट डिवाइस है। इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त डेटा और सूचना को किसी कागज पर प्रिंट  करने के लिए करते हैं। यह ब्लैक और व्हाइट (Black and White) के साथ-साथ कलर डॉक्यूमेंट  को भी प्रिंट  कर सकता है। किसी भी प्रिंटर की क्वालिटी उसकी प्रिंटिंग की क्वालिटी पर निर्भर करती है अर्थात् जितनी अच्छी प्रिंटिंग क्वालिटी होगी, प्रिंटर उतनी ही अच्छा माना जाएगा। किसी प्रिंटर की गति कैरेक्टर प्रति सेकण्ड (Character Per SecondCPS) में, लाइन प्रति मिनट (Line Per Minute-LPM) में और पेजेज प्रति मिनट (Pages Per Minute-PPM) में मापी जाती है। किसी प्रिंटर की क्वालिटी डॉट्स प्रति इंच (Dots Per Inch-DPI) में मापी जाती है। अर्थात् पेपर पर एक इंच में जितने ज्यादा-से-ज्यादा बिन्दु होंगे, प्रिंटिंग उतनी ही अच्छी होगी। प्रिंटर को दो भागों में बाँटा गया है-

(i) इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer)

(ii) नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर (Non-Impact Printer)

 

(i) इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer): – यह प्रिंटर टाइपराइटर की तरह कार्य करता है। इसमें अक्षर छापने के लिए छोटे-छोटे पिन या हैमर्स होते हैं। इन पिनों पर अक्षर बने होते हैं। ये पिन स्याही से लगे हुए रिबन (Ribbon) और उसके बाद पेपर पर प्रहार करते है, जिससे अक्षर पेपर पर छप जाते हैं। इम्पैक्ट प्रिंटर एक बार में एक कैरेक्टर या एक लाइन प्रिंट कर सकता है। इस प्रकार के प्रिंटर ज्यादा अच्छी क्वालिटी की प्रिंटिंग नहीं करते हैं। ये प्रिंटर दूसरे प्रिंण्टर्स की तुलना में सस्ते होते हैं और प्रिंटग के दौरान आवाज अधिक करते हैं, इसलिए इनका प्रयोग कम होता है। इम्पैक्ट प्रिंटर चार प्रकार के होते हैं।

 

(a) डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर्स (Dot Matrix Printers): – डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर में पिनो की एक पंक्ति होती है जो कागज के ऊपरी सिरे पर रिबन पर प्रहार करते हैं। जब पिन रिबन पर प्रहार करते है तो डॉट्स (Dots) का एक समूह एक मैट्रिक के रूप में कागज़ पर पड़ता है, जिससे अक्षर या चित्र छप जाते हैं। इस प्रकार के प्रिंटर को पिन प्रिंटर भी कहते हैं। डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर एक बार में एक डॉटस मैट्रिक्स प्रिंटर्स ही कैरेक्टर प्रिंट  करता है। यह अक्षर या चित्र को डॉट्स के पैटर्न (Pattern) में प्रिंट करते हैं अर्थात कोई केरेक्टर या चित्र बहुत सारे डॉट्स को मिलाकर प्रिंट किए जाते हैं। ये काफी धीमी गति से प्रिंट करते हैं। तथा ज्यादा आवाज करते हैं। जिससे इसे कम्प्यूटर के साथ कम प्रयोग करते हैं।

 

(b) डेजी व्हील प्रिंटर्स (Daisy Wheel Printers): – डेजी व्हील प्रिंटर्स में कैरेक्टर की छपाई टाइपराइटर की तरह होती है। यह डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर की अपेक्षा अधिक रिजोल्यूशन की प्रिंटिंग करता है तथा इसका आउटपुट, डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर की अपेक्षा ज्यादा विश्वसनीय (Reliable) होता है।

 

(c) लाइन प्रिंटर्स (Line Printers): – इस प्रकार के प्रिंटर के द्वारा एक बार में पूरी एक लाइन प्रिंट होती है। भी एक प्रकार के इम्पैक्ट प्रिंटर होते हैं जो कागज पर दाब डालकर एक बार में पूरी एक लाइन प्रिंट करते हैं, इसीलिए इन्हें लाइन प्रिंटर कहते हैं। इनकी प्रिंटिंग की क्वालिटी ज्यादा अच्छी नहीं होती है, लेकिन प्रिंटिंग की गति काफी तेज होती है।

(d) ड्रम प्रिंटर्स (Drum Printers): – ये एक प्रकार के लाइन प्रिंटर होते हैं, जिसमें एक बेलनाकार ड्रम (Cylindrical Drum) लगातार घूमता रहता है। इस ड्रम में अक्षर उभरे हुए होते हैं। ड्रम और कागज के बीच में एक स्याही से लगी हुई रिबन होती हैं। जिस स्थान पर अक्षर छापना होता है, उस स्थान पर हैमर कागज़ के साथसाथ रिबन पर प्रहार करता है। रिबन ड्रम प्रिन्टर पर प्रहार होने से रिबन ड्रम में लगे अक्षर पर दबाव डालता है, जिससे अक्षर कागज़ पर छप जाता है।

 

(ii) नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर (Non-Impact Printer): – ये प्रिंटर कागज़ पर प्रहार नहीं करते, बल्कि अक्षर या चित्र प्रिंट करने के लिए स्याही की फुहार कागज पर छोड़ते हैं। नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर प्रिंटिंग में इलेक्ट्रोस्टैटिक केमिकल और इंकजेट तकनीकी का प्रयोग करते हैं। इसके द्वारा उच्च क्वालिटी के ग्राफिक्स और अच्छी किस्म के अक्षरों को छापा जाता है। ये प्रिंटर इम्पैक्ट की तुलना में महँगे होते हैं, किन्तु इनकी छपाई इम्पैक्ट प्रिंटर की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है। नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर निम्न प्रकार के होते हैं-

 

(a) इंकजेट प्रिंटर (Inkjet Printer): – इंकजेट प्रिंटर में कागज पर स्याही की फुहार द्वारा छोटेछोटे बिन्दु डालकर छपाई की जाती है, इनकी छपाई की गति 1 से 4 पेज प्रति मिनट होती है। इनकी छपाई की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। ये विभिन्न प्रकार के रंगो द्वारा अक्षर और चित्र छाप सकते हैं। इन प्रिंट रों में छपाई के लिए A4 आकार के पेपर का प्रयोग करते हैं। इंकजेट प्रिंटर में रीबन के स्थान पर गीली स्याही से भरा हुआ कार्टिज (Cartridge) लगाया जाता है। यह कार्टिज एक जोड़े के रूप में होता है। एक में काली (Black) स्याही भरी जाती है तथा दूसरे में मैजेण्टा (Magenta), पीली (Yellow) और सियान रंग (Green-Bluish) की स्याही भरी जाती है। कार्टिज ही इस प्रिंटर का हेड (Head) होता है जो कागज पर स्याही की फुहार छोड़कर छपाई करता है। इंकजेट प्रिंटर को प्रायः समानान्तर पोर्ट (Parallel Port) के माध्यम से कम्प्यूटर से जोड़ा जाता है। वैसे आजकल USB पोर्ट वाले इंकजेट प्रिंटर प्रयोग किए जाते हैं। इसमें रोज़ एक या दो पेज प्रिंट करना चाहिए, जिससे इसका कार्टिज गीला रहता है और बेकार नहीं होता।

 

(b) थर्मल प्रिंटर (Thermal Printer): – यह पेपर पर अक्षर छापने के लिए ऊष्मा का प्रयोग करता है। ऊष्मा के द्वारा स्याही को पिघलाकर कागज पर छोड़ते हैं, जिससे अक्षर या चित्र छपते हैं। फैक्स मशीन भी एक प्रकार का थर्मल प्रिंटर है। यह अन्य प्रिन्टर की अपेक्षा धीमा और महँगा होता है और इसमें प्रयोग करने के लिए एक विशेष प्रकार के पेपर की जरूरत पड़ती है जो केमिकली ट्रीटेड पेपर (Chemically Treated Paper) होता है।

 

(c) लेजर प्रिंटर (Laser Printer): – लेजर प्रिंटर के द्वारा उच्च गुणवत्ता (Quality) के अक्षर और चित्र छापे जाते हैं। ये विभिन्न प्रकार के और विभिन्न स्टाइल के अक्षर को छाप सकते हैं। इसकी छपाई की विधि फोटोकॉपी लेजर प्रिंटर मशीन से मिलती-जुलती है। इसमें कम्प्यूटर से भेजा गया डेटा लेजर किरणों की सहायता से इसके ड्रम पर चार्ज उत्पन्न कर देता है। इसमें एक टोनर होता है जो चार्ज के कारण इम पर चिपक जाता है। जब यह इम घूमता है और इसके नीचे से कागज निकलता है, तो टोनर कागज पर अक्षरों या चित्रों का निर्माण करता है। ये प्रिंटर अपनी क्षमता के अनुसार, 1 इंच में 300 से 1200 बिन्दुओं की सघनता (Density) द्वारा छपाई कर सकते हैं। ये एक मिनट में 5 से 24 पेज तक छाप सकते हैं। ये इम्पैक्ट प्रिंटर से ज्यादा महँगे होते हैं।

 

(d) इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिंटर (Electro Magnetic Printer): – इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिंटर या इलेक्ट्रो फोटोग्राफिक प्रिंटर बहुत तेज गति से छपाई करते हैं। ये प्रिंटर्स, पेज प्रिंटर (जो एक बार में पूरा पेज प्रिंट करते हों) की श्रेणी में आते हैं। ये प्रिंटर किसी डॉक्यूमेंट में एक मिनट के अन्दर 20,000 लाइनें प्रिंट कर सकते हैं अर्थात् 250 पेज़ प्रति मिनट की दर से छपाई कर सकते हैं। इसका विकास पेपर कॉपियर तकनीक के माध्यम से किया गया था।

 

(e) इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रिंटर (Electro Static Printer): – इस प्रिंटर का प्रयोग सामान्यतः बड़े फॉर्मेट को प्रिटिंग के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग ज्यादातर बड़े प्रिटिंग प्रेस में किया जाता है, क्योंकि इनकी गति काफी तेज होती है तथा प्रिंट करने में खर्च कम आता है।

 

  1. स्पीकर (Speaker)

यह एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है जो कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को आवाज के रूप में सुनाती हैं। यह कम्प्यूटर से डेटा विद्युत धारा (Electric Current) के रूप में प्राप्त करता है। इसे सीपीयू (CPU) से जोड़ने के स्पीकर लिए साउण्ड कार्ड की जरूरत पड़ती है। यही साउण्ड कार्ड साउण्ड उत्पन्न करता है। इसका प्रयोग गाने सुनने में, संवाद आदि में करते हैं। कम्प्यूटर स्पीकर वह स्पीकर होता है जो कम्प्यूटर में आन्तरिक या बाह्य रूप से लगा होता है।

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